बिखरे से पल , बिखरा हुआ मैं ..
हर पल उलझन , उलझा हुआ मैं ..
क्या सुनु ,क्या कहू , क्या करू ,
समय से लड़ता हुआ मैं ..
एक सोच थी या बचपना ..
साथ हसीं था , मंजिल भी नजदीक लगती थी ..
सूरज भी था मुट्ठी में ,
और आसमा शायद अंत था जहाँ का ..
न सोच थी न ही बचपना ..
टूट के चुभे जब तो एहसास हुआ ,
सब कुछ एक सपना था .
सब झूठ लगता है अब ..
हर एक सपना टुटा हुआ लगता है अब ..
समय जल्दी बीत गया या मैं ही तेज़ चला ,
सब कुछ छूता हुआ लगता है अब .
जिंदगी खूबसूरत तो है पर हर पल नहीं ..
सुलझती है उलझने पर हर दम नहीं ..
कुछ उलझनें अनसुलझे ही अच्छे होते हैं ..
कुछ सपने टूटे हुए ही अच्छे होते हैं ..
उलझनें ना हो तो , जिंदगी जिंदगी कहाँ ??
सपने ना टूटे to, जिंदगी सच कहाँ ??